DNS या डोमेन नाम प्रणाली वह तकनीक है जो हमें वेबसाइटों को जल्दी और आसानी से एक्सेस करने की अनुमति देती है. प्रत्येक वेबसाइट और वास्तव में प्रत्येक कंप्यूटर या अन्य कनेक्टेड डिवाइस का अपना आईपी एड्रेस होता है IPv4 के मामले में IPv4 या कॉलोन्स के मामले में डॉट्स द्वारा प्रतीत होने वाले यादृच्छिक संख्याओं की एक स्ट्रिंग. मेमोरी के लिए इन एड्रेस को कम करना बिल्कुल व्यावहारिक नहीं है हालांकि डीएनएस जहां आता है.
सर्वर पर सभी Website को एक आईपी एड्रेस द्वारा विशिष्ट Identify किया जाता है. सर्वर पर सभी Website का एक आईपी एड्रेस होता है लेकिन आप इसे देख नहीं पाते है. यह आईपी एड्रेस Numerical नंबर से मिलकर बना होता है जो Network और Host के बारे में जानकारी देता है. अगर आप Internet का उपयोग करते है तो आप एक दिन मे बहुत सी Website पर जाते होंगे है ऐसे मे किसी के लिए भी इतनी सारी Website के आईपी एड्रेस को याद रखना कितना मुश्किल होगा इसका आप अंदाजा लगा सकते हो.
अगर आसान शब्दो में कहा जाये तो Internet पूरी तरह आईपी एड्रेस के द्वारा काम करता है. सर्वर पर सभी Website के नाम को को आईपी एड्रेस की तुलना मे आसानी से याद रखा जा सकता है क्योंकि आईपी एड्रेस को याद रखना बहुत मुश्किल काम है. इसलिए एक ऐसे System का उपयोग किया जाता है जो किसी Website के आईपी एड्रेस को एक Domain Name के द्वारा Identify कर सके.
DNS एक इंटरनेट सर्विस है जो आपके द्वारा दिए गए नाम को आईपी एड्रेस के रूप में विभक्त करती है. जब भी आप Browser मे कोई Domain Name Type करते है तो DNS उसके साथ संबंधी आईपी एड्रेस को विभक्त करता है. इसके बाद विभक्त TLD और दूसरे सर्वर की मदद से Website को सर्च किया जाता है और उपयोगकर्ता को दिखाई जाती है.
सबसे पहले उपयोगकर्ता किसी Website का URL वेब ब्राउज़र के Address Bar मे लिखता है और Enter Press करता है. उदाहरण के लिए user www.tutorialsroot.com को खोलना चाहता है.
सबसे पहले Browser अपने Cache को देखता है की क्या उसके पास इस Domain Name का आईपी एड्रेस पहले से मौजूद है. जब भी आप किसी Website को Visit करते है तो उसका आईपी एड्रेस ब्राउज़र अपने Chache में कुछ दिनों के लिए इकट्ठा कर लेता है. ऐसा इसलिए किया जाता है की ताकि एक ही प्रक्रिया को बार बार ना दोहराया जाए और Server पर Load भी ना पड़े.
यदि Browser को Cache में ही IP Address मिल जाता है तो उपयोगकर्ता को उस IP Address से Add कर दिया जाता है और Website Load हो जाती है. यदि ब्राउज़र को IP Address अपने Cache में नहीं मिलता है तो ब्राउज़र ये Request Operating System को Transfer करता है. Operating system इस Request को Resolver को Transfer करता है.
Domain Name बहुत ही प्रकार के होते है. यहाँ पर आप उन सभी डोमेन के नाम देख सकते हो जो आज के समय में पूरी दुनिया में लोकप्रिय है.
Top Level Domains को IDE के नाम से भी जाना जाता है. TLD वो आखिरी वाला हिस्सा होता है जहाँ Domain Name खत्म होता है. इन शीर्ष स्तर के डोमेन में कोई भी एक्सटेंशन शामिल होता है जिसमें केवल एक शब्द के अंत में प्रत्यय जोड़ना होता है उदाहरण के लिए
com Commercial
.org Organization
.net Network
.gov Government
.edu Education
.name Name
.biz Business
.info Information
इस प्रकार के Domain का उपयोग आमतोर पे किसी विशेष देश को नज़र में रखकर किया जाता है. ये किसी देश के Two Letter ISO CODE के आधार पे Nominated होता है. उदाहरण के लिए कुछ Important Domain Extension दिए है जिनको आप नीचे देख सकते है.
.us United States
.in India
.ch Switzerland
.cn China
.ru Russia
.br Brazil
इस प्रकार के डोमेन TOP Level Domain के बाद आते है इनका Extension थोड़ा अलग होता है TLD से उदाहरण के लिए - co.in इस तरह का Domain आपने देखा होगा इसमें .co Second Level Domain होता है और .in TLD होता है .
Second Level Domain के Left में Dot के पहले वाले को Third Level Domain बोला जाता है. इस तरह Domain तरफ Side में और बढ़ेंगे तो Continue Fourth और Fifth Domain कहा जाएगा.
SUB DOMAIN एक ऐसा Domain होता है जो बड़े Domain का एक छोटा हिस्सा होता है उदाहरण के लिए north.example.com या south.example.com. दोस्तों जब आप Bloggar में Website बनाते हैं तो उसमे हमे अपना Domain Subdomain के रूप में मिलता है.